मोहन यादव को एमपी का सीएम बनाना बीजेपी की मजबूरी ! जानें पांच बड़े कारण।

Mobile Logo

Mobile Logo

मोहन यादव को एमपी का सीएम बनाना बीजेपी की मजबूरी ! जानें पांच बड़े कारण।


छत्तीसगढ़ के बाद बीजेपी(BJP) ने मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में भी मुख्यमंत्री पद के नाम का ऐलान कर दिया है। उज्जैन दक्षिण से तीसरी बार विधायक बने डॉ मोहन यादव (Mohan Yadav) एमपी के अगले मुख्यमंत्री होगें। वहीं नरेंद्र सिंह तोमर को स्पीकर बनाया गया है इसके अलावा छत्तीसगढ़ की तरह ही  मध्य प्रदेश में भी आलाकमान ने 2 डिप्टी सीएम बनाने का फैसला किया है- यह पद जगदीश देवड़ा और राजेश शुक्ला संभालेंगे। इस पूरे घटनाक्रम के बीच इस बात की चर्चा जोरों पर है कि वह नाम सबसे आगे कैसे पहुंच गया जो लिस्ट में कहीं था ही नहीं? मोहन यादव ही क्यों एमपी में पार्टी के सबसे पसंदीदा चेहरा बने? आज हम उन पांच कारणों पर हम चर्चा करेंगे।

1. पिछड़े चेहरे पर फोकस

पिछड़े समुदाय से आने वाले मोहन यादव को चुनकर बीजेपी ने यह संदेश दिया है कि वो 2024 के लोकसभा में पिछड़ों वोटरों को कैसे लुभाएगी। बीजेपी आलाकमान ने छत्तीसगढ़ के बाद एमपी में पिछड़ा चेहरा चुना है और वह विपक्षी गठबंधन 'INDIA' के जातिगत जनगणना के काट के रूप में इस्तेमाल करेगी।
अब अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी और तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी ही नहीं कांग्रेस भी OBC समुदाय को अपने पाले में करने के लिए हर प्रयास कर रही है. ऐसे में बीजेपी ने शिवराज को हटाकर मध्य प्रदेश में पिछड़े चेहरे से ही रिप्लेस किया है।

2. अंदर से बाहर तक भाजपाई मोहन यादव

डॉ मोहन यादव ही क्यों? इसका जवाब खोजने के लिए हमें डॉ मोहन यादव के राजनीतिक बैकग्राउंड को जनना जरूरी है  यह समझना पड़ेगा कि वो बीजेपी के लिए कितने फायदेमंद हो सकते है।

मोहन यादव छात्र राजनीति के समय से ही बीजेपी के छात्र संगठन ABVP से जुड़े रहे हैं। मोहन यादव 1984 में ABVP के उज्जैन अध्यक्ष बने और 1986 तक इस पद पर रहे। ABVP के सहारे वे बीजेपी की राजनीतिक गलियारों की ओर कदम बढ़ाते रहे। उन्होंने मध्य प्रदेश ABVP के राज्य सह-सचिव और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य जैसी भूमिकाओं को भी निभाया।


3. आरएसएस के से पुराना नाता।

मोहन यादव आरएसएस के बेहद करीबी माने जाते हैं। छात्र राजनीति के समय से उन्होंने उज्जैन में आरएसएस की तमाम कार्यवाहियों में भाग लिया है और 1993 से 1995 के बीच वे आरएसएस (उज्जैन) शाखा के सहखंड कार्यवाह भी बने। आगे 1996 में वे उज्जैन आरएसएस शाखा में खण्ड कार्यवाह और नगर कार्यवाह बने।

बीजेपी और आरएसएस, दोनों के लिए मध्य प्रदेश को प्रयोगशाला कहा जाता है। अगले लोकसभा चुनाव में 6 महीने से भी कम का वक्त बचा है। ऐसे में बीजेपी आलाकमान ऐसे चेहरा चाहती थी जो जितना करीब बीजेपी के हो वह आरएसएस के नेतृत्व को भी अपने उतना ही करीब नजर आए। इस प्रोफाइल में मोहन यादव एकदम फिट बैठते हैं.।

4. मालवा-निमाड़ पर पकड़ मजबूत रखना

इस बार के चुनाव में मालवा-निमाड़ से बीजेपी को ज्यादा फायदा हुआ और अब पार्टी ने उसी क्षेत्र से सीएम चुनकर यहां के लोगों को सन्देश भी दे दिया है कि 2024 में भी आशीर्वाद बना रहे। एमपी में सीएम की कुर्सी तक पहुंचने के लिए जीत की तिजोरी कहे जाने वाले मालवा-निमाड़ में 66 सीटों में से बीजेपी ने 48 पर जीत दर्ज की। पिछली बार यहां की 35 सीटों पर जीत हासिल करने वाली कांग्रेस सिमट कर मात्र 17 पर आ गयी है।

यहां राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' भी काम नहीं आई। मालवा - निमाड़ के 6 जिलों से भारत जोड़ो यात्रा निकली थी- उन जिलों की 30 सीटों में कांग्रेस सिर्फ 5 सीटें ही जीत पाई है।

बीजेपी का प्रयास है कि जीत का यह अंतर 2024 के आम चुनावों में भी बना रहे।

5. यूपी बिहार में यादवों को लुभाने का प्रयास
बिहार में जाति जनगणना के आकड़ो के बाद बीजेपी यादव वोटरों के बीच पैठ बनाने की जुगत में है। अभी में आरजेडी तो वहीं उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में भी सेंध लगाने के जुगाड में बीजेपी लगी हुई है। अभी तक इन दोनो राज्यों में यादव वोटर इन्ही दोनो पार्टियों को वोट देता आ रहा है।
इस खबर में इतना ही वैसे मध्य प्रदेश में बीजेपी द्वारा मोहन यादव को राज्य का सीएम बनाए जाने पर आप क्या सोचते है अपनी राय कमेंट में जरूर बताएं 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ