आजमगढ़। जनपद के विकासखंड अजमतगढ़ की ग्राम पंचायत कठैचा और देवापार शुक्रवार को उस समय सुर्खियों में आ गए, जब समाज कल्याण अधिकारी मोतीलाल अचानक जांच के लिए कठैचा गांव पहुंचे। जांच के दायरे में तीन काम थे, लेकिन जो कहानी पोखरी से शुरू हुई, वो सरकारी योजनाओं के समतलीकरण तक आ पहुंची — और वो भी मिट्टी डालकर!
कठैचा गांव में ग्राम पंचायत ने पहले लाखों रुपये की लागत से एक पोखरी की खुदाई करवाई। यह काम बड़े शान से पूरा भी हुआ। लेकिन सरकार की योजनाओं की बिसात पर चालें ऐसी चली गईं कि उसी पोखरी को दोबारा मिट्टी से पाटकर समतल ज़मीन में तब्दील कर दिया गया — और फिर उसे जल जीवन मिशन के तहत टंकी निर्माण के लिए प्रस्तावित कर दिया गया।
अब सवाल ये उठता है कि एक ओर सरकारी धन से जल संरक्षण के नाम पर पोखरी बनाई जाती है, और दूसरी ओर उसी जमीन को समतल कर वहां टंकी खड़ी कर दी जाती है — फिर वही सरकारी धन। यानी मिट्टी डालो, पैसा निकालो स्कीम?
जब जांच अधिकारी से इस पर सवाल किया गया कि क्या यह दोहरी फंडिंग और योजनाओं के दुरुपयोग का मामला नहीं है, तो उन्होंने गोलमोल जवाब देते हुए कहा, ग्राम सभा का प्रस्ताव था, सरकारी जमीन उपलब्ध थी, तो निर्माण कर दिया गया। लेकिन जब उनसे सीधे पूछा गया कि क्या पोखरी की खुदाई पर पहले खर्च हुए सरकारी धन का उल्लेख टंकी के प्रस्ताव में किया गया था — तो वे खामोश हो गए। न कोई दस्तावेज, न कोई संतोषजनक जवाब।
यह मामला सिर्फ एक पोखरी का नहीं है, बल्कि यह सिस्टम में बैठे उन लोगों की कार्यशैली का आईना है, जिनके लिए सरकारी योजनाएं ‘आमदनी के नए अवसर’ से ज़्यादा कुछ नहीं। मिट्टी का यह खेल कहीं पोखरी में नहीं, प्रशासनिक व्यवस्था की नींव में भरता जा रहा है।
सवाल वही है – सरकारी धन से खोदो भी तुम, भरो भी तुम, और फिर उसी पर योजना लगाकर पैसा फिर से निकालो – आखिर जिम्मेदार कौन? जवाब किसी के पास नहीं — सिवाय उस पोखरी के, जिसे पहले खोदकर और फिर पाटकर, विकास की मिसाल बना दिया गया है?
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