एक जान गई तो तार हिले—दो साल बाद खंभे पर चढ़ी विभाग की नींद!"

Mobile Logo

Mobile Logo

एक जान गई तो तार हिले—दो साल बाद खंभे पर चढ़ी विभाग की नींद!"

 

सगड़ी | आजमगढ़  29 अप्रैल को जीयनपुर बाजार में हुई करंट हादसे में हलवाई सुरेश चंद उर्फ मुलायम मोदनवाल की मौत के बाद आखिरकार विद्युत विभाग की नींद टूटी। जिस खंभे को दो साल पहले लगाकर विभाग भूल गया था, अब उसी पर आनन-फानन में केबल को बांधा गया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है—क्या यह 'मरने के बाद चेतना' है या असली सुधार की शुरुआत? 

मंगलवार की सुबह मुलायम मोदनवाल अपनी दुकान के सामने पेड़ की टहनी काट रहे थे, तभी वह विद्युत विभाग की खुली और कटी केबल की चपेट में आ गए। गंभीर रूप से झुलसने के बाद परिजनों ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। 


यह हादसा न केवल एक व्यक्ति की जिंदगी छीन ले गया, बल्कि विभागीय लापरवाही की पोल भी खोल गया। अब सवाल उठता है—जब कस्बों, भीड़भाड़ वाले इलाकों में 'सुरक्षा' के नाम पर केबल लगाई जा रही है, तो फिर यह केबल इतनी  'कटी-फटी' और असुरक्षित क्यों है? क्या ये भी किसी बैक डेटेड टेंडर और कमीशनखोरी का नतीजा है? 

परिजन यह भी कहते हैं कि "बिजली विभाग के अधिकारी दोषी हैं और इनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए।"क्योंकि इस मौत की सिर्फ एक वजह थी—लापरवाही!

स्थानीय निवासियों का कहना है कि विद्युत विभाग ने दो साल पहले जो पोल लगाया था, उस पर कभी केबल चढ़ाई ही नहीं गई। उल्टा, केबल को पेड़ों के सहारे झूलता छोड़ दिया गया था। अब जब जान चली गई, तब खंभा ‘याद’ आया।

यह सवाल अब सिर्फ एक मौत का नहीं, व्यवस्था के मृत विवेक का है। क्या सिस्टम को तभी जागना होगा, जब कोई मर जाए?या अब भी वक़्त है—बिजली के तारों से पहले, जिम्मेदारों को करंट लगे?

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ