जब केबल भी मौत बांटने लगे, तो नंगे तारों से डर किस बात का?

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जब केबल भी मौत बांटने लगे, तो नंगे तारों से डर किस बात का?

 दर्दनाक घटना: करेंट से सुरेश की मौत ने खोली विभागीय सुरक्षा की पोल

जीयनपुर आजमगढ़ |मंगलवार को अल्लीपुर गांव के हलवाई सुरेश मोदनवाल की जीयनपुर बाजार के मुबारकपुर तिराहे पर करंट लगने से हुई दर्दनाक मौत के बाद एक सवाल ज़ोर पकड़ रहा है—"क्या केबल लग जाना ही सुरक्षा की गारंटी है?"


जवाब तलाशिए, क्योंकि तस्वीरें और चश्मदीद गवाह कुछ और कहानी कह रहे हैं। घटना स्थल की दो ताज़ा तस्वीरों ने पूरे मामले की पोल खोल दी है। पहली तस्वीर में बिजली के खंभे के बगल में कटे-फटे केबलों का जाल साफ़ दिख रहा है। ठीक उसी के नीचे एक पेड़, जिसकी टहनियों को साफ़ करने गए सुरेश मोदनवाल ने जान गंवा दी। दूसरी तस्वीर उस खंभे की है जो दो साल से बस गाड़कर छोड़ दिया गया था, लेकिन उस पर तार नहीं चढ़ाए गए।




परिजनों और स्थानीय लोगों का आरोप है:"जब खंभा मौजूद था, तो तार पेड़ से क्यों गुजारे गए? और जब नंगे तारों की जगह केबल लगाई गई थी, तो वो इतने कटे-फटे कैसे हो सकते हैं?"

लोगों का गुस्सा जायज़ है। अगर केबल भी जानलेवा हो जाए, तो फिर नंगे तारों से क्या ही डरना!

बीते वर्षों में बिजली विभाग ने कस्बों और भीड़भाड़ वाले बाज़ारों में नंगे तारों को हटाकर उनके स्थान पर केबल डालने का दावा किया था। पर इस घटना ने सवाल खड़ा कर दिया है—क्या यह सिर्फ कागज़ी कवायद थी? क्योंकि केबल के नाम पर मौत का फंदा लटका देना, सुधार नहीं—संहार है। 

विद्युत विभाग के जेई अनुराग सिंह का कहना है:"केबल ऊँचाई पर थी, शायद पैर फिसला हो। जो खंभे खाली हैं, उन्हें जल्द दुरुस्त किया जाएगा।" लेकिन ग्रामीणों का तर्क है—"ऊंचाई पर हो या नीचे, जब केबल ही जगह-जगह से खुली, झूलती और कटी हो—तो फिर ये मौत नहीं तो और क्या है?।

  • क्या इस लापरवाही पर कोई जवाबदेही तय की जाएगी?

  • या फिर मामला कागज़ी 'नोटिंग' और 'सूचना संज्ञान में ले ली गई है' जैसे जुमलों में सिमट जाएगा?

  • क्या आगे और किसी सुरेश को अपनी जान देकर सिस्टम की नींद तोड़नी होगी?


यह घटना चेतावनी है—कि हम सिर्फ खंभे गाड़ रहे हैं, सिस्टम नहीं। हम सिर्फ तार बदल रहे हैं, सोच नहीं। और शायद सबसे बड़ा खतरा यही है।


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