पत्रकारिता का नया अध्याय, चौथा स्तंभ पौआ पर टिका

Mobile Logo

Mobile Logo

पत्रकारिता का नया अध्याय, चौथा स्तंभ पौआ पर टिका

एक समय वो था जब एक पत्रकार की कलम में वो ताक़त हुआ करती थी। कि उसकी कलम से लिखा गया एक-एक शब्द राजनेताओं,व अधिकारियों की कुर्सी को हिलाकर रख देता था। जैसा कि सभी जानते है कि पत्रकारिता ने हमारे देश की आज़ादी में अहम् भूमिका निभाई। जब हमारा देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत के पाँव उखाड़ने के लिए  लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से अपनी बातों को उन तक पहुचाने व अंग्रेजो की गतिविधियों को लोगो से रुबरू कराने के लिए उस वक्त समाचार पत्र,व पत्रिकाओं की शुरूआत हुई थी। जिससे समाचार-पत्र पत्रिकाओं ने देश के लोगो को जोड़ने व एकजुट करने में एक अहम भूमिका निभाई थी।


आज के समय की पत्रकारिता व चौथे स्तम्भ को गिराने में कुछ तथा कथित पत्रकारो ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
चाहे नेता हो, अधिकारी हो, कर्मचारी हो, पुलिस हो, अस्पताल हो सभी जगह बस इनकी ही धाक रहती है, इतना ही नहीं अवैध कारोबारियों व अन्य भ्रष्टाचारी अधिकारियों, कर्मचारियों आदि लोगों से धन उगाही कर व हफ्ता वसूल कर अपनी जेब भरने में लगे रहते हैं। खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देते हैं। और समाज के सामने भ्रष्टाचार को मिटाने का ढिंढोरा पीटते हैं मानो यही सच्चे पत्रकार हो सभी लोग इनके डर से आतंकित रहते हैं कुछ तथाकथित पत्रकार तो यहाँ तक हद करते हैं कि सच्चे, ईमानदार और अपने कार्य के लिए समर्पित रहने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को सुकून से उनका काम भी नहीं करने देते ऐसे ही लोग जनता में सच्चे पत्रकारों की छवि को धूमिल कर रहे है। कुछ युवाओं ने तो पत्रकारिता की अलग ही परिभाषा लिख दी है आज कल पांचवी फेल हो एक लाइन भी लिखना नहीं आता हो फिर भी आप बड़े पत्रकार बन सकते है। बस चौकी थाने तहसील पर बैठ कर दलाली का हुनर होना चाहिए। खबर तो कोई  शाम को पौवा पर लिखकर दे ही देगा। उनका काम बस इतना होता है फोटो खींच लिए वीडियो बना लिए अब शाम के इंजेजाम में लग जाए।
इमारत को बनाने के लिए जिस प्रकार उसके ढांचे को खड़ा करने के लिए चार स्तंभों की जरूरत होती है। ठीक उसी तरह हमारे देश के लोकतंत्र रूपी इमारत में लगे न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायका को लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तम्भ माना गया है। जिनमें चौथे स्तम्भ के रूप में पत्रकार को शामिल किया गया है।
किसी भी देश में स्वतंत्र व निष्पक्ष पत्रकार उतना ही जरूरी व महत्वपूर्ण है जितना लोकतंत्र के अन्य तीन स्तम्भ है।
पत्रकार समाज का चौथा स्तम्भ होता है जिस पर मीडिया का पूरा का पूरा ढांचा खड़ा है जोकि एक नीव का काम करता है। लेकिन अगर उसी स्तम्भ को भ्रष्टाचार व असत्य रूपी दीमक लग जाए तो मीडिया रूपी स्तम्भ को गिरने से बचाने व लोकतंत्र रूपी इमारत को गिरने से बचाने में बहुत बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
जोकि एक चिंता का विषय है। आज के माहौल को देखते हुए यह कहना बिलकुल भी गलत नहीं है की लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पौवे पर टिका है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ