उत्तर प्रदेश में यहां दशहरे के दिन होती है रावण की पूजा, वजह जानकार हो जाएंगे हैरान

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उत्तर प्रदेश में यहां दशहरे के दिन होती है रावण की पूजा, वजह जानकार हो जाएंगे हैरान

 उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम जन्म भूमि और राम मंदिर की चर्चा देश ही नहीं बल्कि पूरे विश्व मे है। दशहरे के अवसर राम की जहा जगह जगह पूजा होती है रामलीला के माध्यम से मंचन होता है। तो वहीं रावण का जगह जगह पुतला जलाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते है की  उत्तर प्रदेश की एक जगह ऐसी भी है जहा दशहरे के दिन रावण की पूजा होती है। यहां पर रावण का मंदिर है जो दशहरे के दिन ही खुलता है। लोग यहां देशभर से रावण के दर्शन के लिए आते हैं।  आइए जानते हैं इस अनोखे मंदिर के बारे में…दशहरे पर जब आप रावण का पुतला जला रहे होते हैं, उस समय उत्तर प्रदेश के एक शहर में रावण की पूजा होती है। यह प्रथा पिछले 103 सालों से चली आ रही है। यह मंदिर विशेष तिथियों पर ही खुलता है। इस मंदिर के पट केवल दशहरे पर ही खोले जाते हैं। आइए जानते हैं इस विशेष मंदिर के बारे में।


दशहरे के पर्व पर जब देश भर में लोग रावण के पुतले का दहन कर रहे होते हैं, उसी समय उत्तर प्रदेश के कानपुर के दशानन मंदिर में रावण की पूजा होती है। इस मंदिर के कपाट केवल दशहरे के दिन खुलते हैं। कानपुर के शिवाला स्थित इस मंदिर में विशेष पूजा होती है। सुबह से शाम तक साधक यहां रावण के दर्शन के लिए आते हैं। मन्नतें मांगने के लिए यहां सरसो के तेल के दिए जलाए जाते हैं।
शहर के शिवाला परिसर में यह इकलौता मंदिर है, इस मंदिर को दशानन मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर को केवल दशहरे के दिन खोला जाता है। रावण की पूजा करने के लिए यहां हजारों की संख्या में भक्त आते हैं। यह मंदिर 103 साल से ज्यादा पुराना माना जाता है। अपने अंदर अनेक तरह की विशेषताओं को समेटे हुए इस मंदिर के दर्शन करने के लिए देशभर से लोग आते हैं। अक्सर विदेशी भी इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं।
पूरे विधि विधान के साथ विजयादशमी के दिन इस मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। रावण की प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है। पूूजा आरती की जाती है। इसके बाद लोगों को दर्शन के लिए प्रवेश दिया जाता है। रावण को शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजने वाले भक्त मंदिर में प्रवेश करते हैं। यहां तेल का दिया जलाकर मन्नत मांगते हैं। बल, बुद्धि और आरोग्य का यहां वरदान मांगते हैं।
मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि इसका निर्माण 103 साल या इससे भी पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था। इस मंदिर के निर्माण के पीछे कई तरह के धार्मिक तर्क भी हैं। कहा जाता है कि रावण बहुत बड़ा विद्वान था। भगवान शिव का परम भक्त था। रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की आराधना करता था। रावण की पूजा से प्रसन्न होकर मां ने रावण को वरदान दिया था कि उनकी पूजा तब सफल होगी जब श्रद्धालु पहले रावण की पूजा करेंगे। कहा जाता है कि शिवाला में 1868 में किसी राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया था। यहां रावण की एक मूर्ति भी प्रहरी के रूप में स्थापित की थी। यह मंदिर भी शारदीय नवरात्र में सप्तमी से नवमी तक खुलता है। पहले मां की आरती होती है और फिर रावण की। रावण की प्रतिमा यहीं कैलाश मंदिर के बराबर में स्थापित की गई है।
इस समय मां छिन्नमस्तिका मंदिर को सार्वजनिक दर्शन के लिए बंद कर दिया गया है। इस मंदिर के बराबर में बना दशानन का मंदिर दशहरे पर सुबह दर्शन के लिए खोला जाता है और शाम को बंद कर दिया जाता है।

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